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रघुनाथ सिंह : एक मूल्याकन

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रघुनाथ सिंह : एक मूल्याकन

स्व० श्री रघुनाथ सिह का जन्म पैना गाँव के एक कृषक परिवार में वर्ष 1873 के जनवरी माह में हुआ था । वे अपने पूज्य पिता स्व० निर्भय सिंह के तीन पुत्रों में सबसे बड़े थे । पैना गाँव की नींव डालने और उसे आबाद करने वाले आदि पुरूष स्व० श्री कीर्तिकुँवर शाही से गणना करने पर श्री रघुनाथ सिंह बाद की बारहवीं पीढ़ी के पायदान पर थे । अपनी आयु के 71वें वर्ष में दिनांक 16 जून 1943 को उन्होंने अपना शरीर छोड़ा ।

स्व० श्री रघुनाथ सिंह ने नार्मल स्तर की शिक्षा ग्रहण करने के बाद राजकीय शिक्षण प्रशिक्षण विद्यालय, इलाहाबाद से जे०टी०सी० का प्रशिक्षण प्राप्त किया । तदुपरान्त पैना के राजकीय मिडिल स्कूल में वे शिक्षक हो गये । पैना का मिडिल स्कूल एक ख्याति प्राप्त स्कूल था । इसके साथ एक छात्रावास भी था । जवार के अनेक छात्र यहाँ रह कर शिक्षा प्राप्त करते थे । समर्पित एवं योग्य शिक्षक के रूप में उन्होंने अपने शिष्यों, अभिभावकों और गाँव एवं क्षेत्र की जनता से अपार सम्मान और श्रद्धा अर्जित किया । लोग उन्हें सम्मान पूर्वक 'बाबू साहब' कहकर सम्बोधित करते थे । यहाँ तक कि गाँव-जवार में उनका घर एवं परिवार 'बाबू साहव के घराना' से ही जाना जाता रहा है ।

अपने कर्तव्यों के प्रति ईमानदारी और निष्ठा, शिष्यों के प्रति अकूत सच्चा वात्सल्य, जन सामान्य के प्रति सौम्य एवं शालीन व्यवहार तथा पड़ोसियों प्रति करूणा एवं उदार भाव उनके आचरण तथा स्वभाव के सहज स्वाभाविक गुण थे । उनके निश्चल हृदय की छाप उनके सम्पर्क में आने वाले हर छोटे बड़े पर पड़े बिना नहीं रहती थी । उपने गाँव के शिक्षा योग्य वय के सभी बच्चों को शिक्षित करने की चाहत उनमें इस सीमा तक थी कि है अपने घर से, जो गाँव के पश्चिम में स्थित था,प्रतिदिन एक घंटा पहले स्कूल के लिए निकल पड़ते थे और रास्ते में गाँव के सभी बच्चों को उनके घर से साथ लेकर स्कूल पहुँचते थे । इसी प्रकार वापसी में बच्चों की और उनके अभिभावकों की अमानत लौटाते हुए अपने घर आते थे । अपने गाँव और क्षेत्र की शिक्षित करने की इच्छा उनमें इतनी उत्कट थी कि गाँव के मिडिल स्कूल के हेडमास्टर के पद पर होने के बाद जब उन्हें इंस्पेक्टर (डिप्टी) के पद की प्रोन्नति मिली तो उसे अस्वीकार कर दिया और गाव के मिडिल स्कूल के हेड मास्टर ही बने रहने की इच्छा लिखकर शासन को दे दिया ।

'बाबू साहब' के सम्माननीय गुणों का जीता जागता प्रमाण श्री रघुनाथ सिंह उच्चतर माध्यमिक विद्यालय, पैना की स्थापना स्वयं बयाँ करती है । पैना गाँव के निवासी स्व० शिवानन्द भगत जो, पैना के मिडिल स्कूल में स्व० श्री रघुनाथ सिंह के पढ़ाये शिष्य थे और पकड़ी वीरभद्र इण्टर कॉलेज में प्रधानाचार्य थे, ने अपने गाँव में एक जूनियर हाई स्कूल की स्थापना का विचार किया । श्री भगत ने इस विद्यालय के लिए अपनी निजी भूमि देकर विद्यालय का शिलान्यास दिनांक 05 मई, 1985 को किया । इस विद्यालय का नामकरण अपने प्राथमिक गुरू श्री रघुनाथ सिंह की स्मृति में किया । दो वर्ष बाद 1987 में श्री भगत ने आग्रह करके स्व० रघुनाथ सिंह के कनिष्ठ पुत्र श्री अनिरूद्ध सिंह, पी०ई०एस०, अवकाश प्राप्त प्रधानाचार्य - राजकीय जुबिली इण्टर कॉलेज, गोरखपुर को विद्यालय का प्रबन्धक बनाया । इस विद्यालय को सुदृढ़ करने तथा मान्यता की शर्तों की पूरा करने के लिए अतिरिक्त आवश्यक भूमि (कुल 9 बीघा) श्री रघुनाथ सिंह के बड़े पुत्र स्व० श्री गोपीनाथ सिंह, मझले पुत्र स्व० श्री केशवनाथ सिंह तथा कनिष्ठ पुत्र श्री अनिरूद्ध सिंह ने दान में है दिया । श्री शिवनन्दन भगत अपने गुरू के भक्त जी नहीं वरन एक दूरदर्शी मनीषी भी थे । उन्होंने यह समझ लिया था की, जातिवाद, सम्प्रदायवाद, परिवारवाद व स्वार्थवाद से बड़े काम नहीं होते हैं । विकास और गुणवत्ता के लिए योग्य, कर्मठ, अनुभवी, नि:स्वार्थी ओर उदार व्यक्तियों को जोड़ना आवश्यक है । इसका परिणाम हुआ कि आज रघुनाथ सिंह उच्चतर माध्यमिक विद्यालय, पैना-कला और विज्ञान वर्ग से मान्यता प्राप्त इण्टर स्तर तक सक्षम विद्यालय के रूप में स्थापित है । गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के लिए इस विद्यालय की अपनी एक विशिष्ट पहचान है ।

यहाँ पैना गाँव के विकास और उसके इतिहास पर भी ध्यान दिया जाना आवश्यक है । इस सन्दर्भ में जब सिंहावलोकन करते हैं, तो स्व० श्री रघुनाथ सिंह का महत्व और भी बढ़ जाता है । सच तो यह है कि, बाबू साहब के जीवन का कालखण्ड कतिपय उन पहलुओं को स्पष्ट उजागर करता है, जो आज भी प्रासंगिक हैं और उतने ही आवश्यक भी ।

यह एक ऐतिहासिक तथ्य है कि, पैना ग्राम के निवासियों ने भारत के प्रथम स्वतंत्रता की लड़ाई सन 1857 मे जन विद्रोह में बढ़-चढ़ कर भाग लिया था । हारी हुई ब्रिटिश सेना ने जुलाई 31 सन 1857 को पैना गाँव पर दक्षिण और उत्तर दोनों तरफ से जल और थल सेना द्वारा गोलीबारी करके गाँव को ध्वस्त कर दिया । गाँव के सैकड़ों बूढ़े, बच्चे और नौजवान मारे गये थे । गाँव की विद्रोही सेना के 82 लोग भी हलाक हुए । उनकी पत्नियों ने सतिहड़ा के स्थान पर ऊफनती सरयू नदी में कूद कर जल समाधि ले ली । बदले की भावना के खीझी हुई ब्रिटिश सरकार ने मार्च 13, सन् 1858 को कायम मुकाम मजिस्ट्रेट के आदेश द्वारा पैना के सभी पट्टीदारान, हिस्सेदारान एवं नम्बरदारान की मन्कूल (चल) और गैर मन्कूल (अचल) जायदाद जब्त कर ली गई । कमिश्नर के आदेश से 1 9 / 23 अगस्त सन् 1858 को पैना इलाका के 16 गाँवों को जब्त कर लिया गया और राजा मझौली के उदयनारायण मल्ल को ब्रिटिश सरकार का साथ देने के लिए बतौर इनाम है दिया गया । बाद में शेष आठ और गाँव भी जब्त कर लिये गये |

उपरोक्त स्थिति के बाद गाँव की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं रह गई । अंग्रेजी शासन की नज़र में भी पैना उपेक्षित रहा । परिवार इतने समृद्ध नहीं रहे कि ठीक के जीवन यापन कर सकें । जन विद्रोह का उत्तर काल पैना गाँव के लिए बहुत कठिन दौर से गुज़रा । इसी काल खण्ड में श्री रघुनाथ सिंह का जन्म हुआ और उनके पिता श्री निर्भय सिंह ने उन्हें शिक्षित करने का संकल्प लिया । श्री रघुनाथ सिंह ने यह समझ किया कि गाँव का नवनिर्माण केवल शिक्षा के माध्यम से ही हो सकता है । अतः उन्होंने गाँव के हर बच्चे का शिक्षित बनाने और गाँव में ही रहकर पूरे जीवन को खपाने का संकल्प लिया । इसका प्रतिफल स्पष्ट दिखाई पड़ा । गाँव और जवार के लोग शिक्षित होकर पुलिस और सेना एवं अन्य जगहों पर नौकरी पाने लगे । जिन परिवारों ने शिक्षा का महत्व समझा और उसमें अपने बच्चों को ईमानदारी से लगाया उनका विकास हुआ और उनके लिए संस्कारित आचार एवं समृद्धि के द्वार भी खुले ।

स्व० रघुनाथ सिंह के समकालीन तीन और परिवारों में शिक्षा को महत्व मिला । उसी काल खण्ड में इन घरानों में भी शिक्षक हुये । स्व० श्री राजबली सिंह, जो मझौली में शिक्षक हो गए और इन्होंने अपने पुत्र स्व० मेजर वासुदेव सिंह को स्नातक स्तर तक की शिक्षा दिलाई । स्व० श्री कुमार सिंह ने जो बरहज में शिक्षक थे, अपने परिवार के सदस्यों – स्व० सीताराम सिंह, स्व० सूर्यनाथ सिंह, स्व० सूर्यमान सिंह, स्व० तीर्थनाथ सिंह को शिक्षित करने में सहायता दिया । स्व० राजकुमार सिंह जो बिहार प्रदेश में मुंगेर जनपद में प्राथमिक स्तर के शिक्षक थे ने भी शिक्षा महत्व को समझा और अपने पुत्रों एडवोकेट स्व० मुनीश्वर दत्त सिंह, स्व० डा० सीताराम सिंह को शिक्षित कराया | इन आदरणीय शिक्षकों का दायरा अपनों तक तथा जिन स्थानों पर वे कार्यरत थे उस क्षेत्र तक सीमित रहा | गाँव के प्रति अतिरिक्त भाव संवेदना और उसे पुनर्निर्माण के लिए लोगो को शिक्षित कर उन्हें अपने पैरों पर खड़ा हो कर आगे बढ़ने में व्यापक सोच “बाबू साहब” अपेक्षाकृत अधिक रही | स्व० रघुनाथ सिंह ने अपनी शैक्षिक शक्ति और श्रम को व्यापक तथा सार्वभौम बनाया और गाँव तथा क्षेत्र की जनता के लिए न्योछावर कर दिया | इसी भावना के होने से गाँव के लिए उनका विशेष सम्मान और आदर है |

स्व० रघुनाथ सिंह के शिष्य स्व० कमला तिवारी के पुत्र श्री ईश्वर दत्त तिवारी ने भी शिक्षा के मूल्य को समझा | इन्होंने अपने पुत्र-पुत्रियों तथा परिवार के सदस्यों को शिक्षा दिलाने में विशेष सहयोग दिया, जिससे उन्हें सामाजिक एवं आर्थिक स्तर को उच्च करने में सहायता मिली | उस कालखंड में अपने हुनर और खानदानी शिक्षा के लिए स्व० अभीराजा, स्व० हकीम अज़ीज़, स्व० रियाजुल और स्व० हकीम रशीद भी जाने जाते हैं | इन लोगों ने भी स्व० रघुनाथ सिंह से आरंभिक शिक्षा प्राप्त कर लखनऊ से यूनानी चिकित्सा का अध्ययन किया और गाँव को अपनी सेवाएँ दी | इनका परिवार भी शिक्षा के मूल्य को समझता था | यहाँ केवल कुछ एक परिवारों का नाम देकर यह बताने की कोशिश की गयी है की, जिन्होंने ने कठिनाईयों में भी कठिनाइयों में भी शिक्षा का हाथ थामा, शिक्षा ने उनके लिए भरपूर उन्नति के दरवाजे खोले | इनको सँवारने में “बाबू साहब” स्व० रघुनाथ सिंह जी का अप्रतिम सहयोग और आशीर्वाद मिला था |

स्व० बाबू साहब के जीवन और उनके समर्पित श्रम तथा नेक व्यक्तित्व के धनी होने के पक्ष का मूल्यांकन होगा तो निर्विवाद रूप से यह अर्थ निकलेगा कि यदि गाँव या किसी व्यक्ति को आत्मनिर्भर, संस्कारवान, सुगढ़ और आचार-विचारों वाला तथा एक समाजोपयोगी मानव बनाना होगा तो उसे अच्छी गुणवत्ता परक शिक्षा दिया जाना अत्यन्त आवश्यक है | नकल, शिफारिश या केवल येन-केन डिग्री या प्रमाण-पत्र की होड़ में लगने वाले, दूरगामी दौड़ में कभी भी जीत नहीं पाएंगे |

अच्छी गुणवत्ता परक शिक्षा के लिए साथ देने, उसे पाने का संकल्प लेने से ही हम स्व० श्री रघुनाथ सिंह को अपनी सच्ची श्रद्धांजलि दे सकेंगे |

डॉ० बी० के० सिंह
प्रबंधक
रघुनाथ सिंह इण्टर कॉलेज, पैना, देवरिया ।